देश की आजादी से बरबादी के सफर में हमने आधी से अधिक सदी गुजारी है /
दोस्तो राजनीति के टू व्हीलर पर ये सफर आज भी अनवरत जारी है /
राजनीति शब्द संज्ञा है या सर्वनाम है ?
लेकिन ये सच है कि इसे चलाना एक्सक्लूसिवली नेताओं का काम है/
शब्दार्थ खोजें तो
नीति न्याय से राजकाज चलाना ही इसका अर्थ है /
किन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यह अर्थ पूर्णतया ही व्यर्थ है /
क्योंकि नीति में “अ” का प्रवेश हो गया है /
अनीतिमय ही सारा देश हो गया है /
और
राज की क्या बात करें अराजकता फैली भरपूर है /
शासक उन्मुक्त और आजाद है, लेकिन जनता मजबूर है /
खैर जो हुआ सो हुआ और जो होगा हो जायेगा /
किन्तु हमें स्वीकार नहीं कि हिन्दी की लज्जा को ऐसे लूटा जायेगा /
राजनीति शब्द का प्रयोग जहॉं होता है वहॉं नीति का अस्तित्व ही कहॉं होता है /
और जब अराजकता की धुन्ध में सुराज दिखने से लाचार हो गया है /
क्या ये राजनीति शब्द के साथ अनाचार नहीं हो रहा है /
हमने आजादी देश के नेताओं द्वारा देश के नेताओं के लिये पाई है /
ये देश के कर्णधार हैं उनकी कारगुजारी हमारे वश में नहीं आई है /
किन्तु मेरे मित्रो तुम तो भाषा के कर्णधार बनते हो /
हिन्दी के इस पवित्र शब्द की अस्मत का ध्यान नहीं रखते हो /
हे साहित्य के निर्माताओ तुमसे ये दरख्वास्त है /
इस शब्द में एक “अ” जोड दो बस यही तुम्हारे बस की बात है/
मेरा आपको एक विनम्र सुझाव है /
यदि आपके दिल में भाषा के प्रति कुछ सम्मान का भाव है /
इस देश में जितने भी हिन्दी के शब्दकोश पाये जायें /
उनमें राजनीति शब्द पर एक संशोधन अवश्य करवायें /
कि राजनीति शब्द के स्थान पर राजअनीति शब्द पढा जाये /

रचना प्रदीप मानोरिया

http://blogs.ibibo.com/pradeepmanoria/hindi-post-35